नव ग्रह करावलम्ब स्तोत्रम्
ज्योतीश देव भुवनत्रय मूलशक्ते
गोनाथ भासुर सुरादिभिरीद्यमान ।
नॄणांश्च वीर्य वर दायक आदिदेव
आदित्य वेद्य मम देहि करावलम्बम् ॥ १॥
नक्षत्रनाथ सुमनोहर शीतलांशो
श्री भार्गवी प्रिय सहोदर श्वेतमूर्ते ।
क्षीराब्धिजात रजनीकर चारुशील
श्रीमच्छशांक मम देहि करावलम्बम् ॥ २॥
रुद्रात्मजात बुधपूजित रौद्रमूर्ते
ब्रह्मण्य मंगल धरात्मज बुद्धिशालिन् ।
रोगार्तिहार ऋणमोचक बुद्धिदायिन्
श्री भूमिजात मम देहि करावलम्बम् ॥ ३॥
सोमात्मजात सुरसेवित सौम्यमूर्ते
नारायणप्रिय मनोहर दिव्यकीर्ते ।
धीपाटवप्रद सुपंडित चारुभाषिन्
श्री सौम्यदेव मम देहि करावलम्बम् ॥ ४॥
वेदान्तज्ञान श्रुतिवाच्य विभासितात्मन्
ब्रह्मादि वन्दित गुरो सुर सेवितांघ्रे ।
योगीश ब्रह्म गुण भूषित विश्व योने
वागीश देव मम देहि करावलम्बम् ॥ ५॥
उल्हास दायक कवे भृगुवंशजात
लक्ष्मी सहोदर कलात्मक भाग्यदायिन् ।
कामादिरागकर दैत्यगुरो सुशील
श्री शुक्रदेव मम देहि करावलम्बम् ॥ ६॥
शुद्धात्म ज्ञान परिशोभित कालरूप
छायासुनन्दन यमाग्रज क्रूरचेष्ट ।
कष्टाद्यनिष्ठकर धीवर मन्दगामिन्
मार्तंडजात मम देहि करावलम्बम् ॥ ७॥
मार्तंड पूर्ण शशि मर्दक रौद्रवेश
सर्पाधिनाथ सुरभीकर दैत्यजन्म ।
गोमेधिकाभरण भासित भक्तिदायिन्
श्री राहुदेव मम देहि करावलम्बम् ॥ ८॥
आदित्य सोम परिपीडक चित्रवर्ण
हे सिंहिकातनय वीर भुजंग नाथ ।
मन्दस्य मुख्य सख धीवर मुक्तिदायिन्
श्री केतु देव मम देहि करावलम्बम् ॥ ९॥
मार्तंड चन्द्र कुज सौम्य बृहस्पतीनाम्
शुक्रस्य भास्कर सुतस्य च राहु मूर्तेः ।
केतोश्च यः पठति भूरि करावलम्ब
स्तोत्रम् स यातु सकलांश्च मनोरथारान् ॥ १०॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
॥ ॐ तत् सत् ॥
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