Friday, 30 June 2023

नव ग्रह करावलम्ब स्तोत्रम्

 नव ग्रह करावलम्ब स्तोत्रम्

 

ज्योतीश देव भुवनत्रय मूलशक्ते

गोनाथ भासुर सुरादिभिरीद्यमान ।

नॄणांश्च वीर्य वर दायक आदिदेव

आदित्य वेद्य मम देहि करावलम्बम् ॥ १॥

 

नक्षत्रनाथ सुमनोहर शीतलांशो

श्री भार्गवी प्रिय सहोदर श्वेतमूर्ते ।

क्षीराब्धिजात रजनीकर चारुशील

श्रीमच्छशांक मम देहि करावलम्बम् ॥ २॥

 

रुद्रात्मजात बुधपूजित रौद्रमूर्ते

ब्रह्मण्य मंगल धरात्मज बुद्धिशालिन् ।

रोगार्तिहार ऋणमोचक बुद्धिदायिन्

श्री भूमिजात मम देहि करावलम्बम् ॥ ३॥

 

सोमात्मजात सुरसेवित सौम्यमूर्ते

नारायणप्रिय मनोहर दिव्यकीर्ते ।

धीपाटवप्रद सुपंडित चारुभाषिन्

श्री सौम्यदेव मम देहि करावलम्बम् ॥ ४॥

 

वेदान्तज्ञान श्रुतिवाच्य विभासितात्मन्

ब्रह्मादि वन्दित गुरो सुर सेवितांघ्रे ।

योगीश ब्रह्म गुण भूषित विश्व योने

वागीश देव मम देहि करावलम्बम् ॥ ५॥

 

उल्हास दायक कवे भृगुवंशजात

लक्ष्मी सहोदर कलात्मक भाग्यदायिन् ।

कामादिरागकर दैत्यगुरो सुशील

श्री शुक्रदेव मम देहि करावलम्बम् ॥ ६॥

 

शुद्धात्म ज्ञान परिशोभित कालरूप

छायासुनन्दन यमाग्रज क्रूरचेष्ट ।

कष्टाद्यनिष्ठकर धीवर मन्दगामिन्

मार्तंडजात मम देहि करावलम्बम् ॥ ७॥

 

मार्तंड पूर्ण शशि मर्दक रौद्रवेश

सर्पाधिनाथ सुरभीकर दैत्यजन्म ।

गोमेधिकाभरण भासित भक्तिदायिन्

श्री राहुदेव मम देहि करावलम्बम् ॥ ८॥

 

आदित्य सोम परिपीडक चित्रवर्ण

हे सिंहिकातनय वीर भुजंग नाथ ।

मन्दस्य मुख्य सख धीवर मुक्तिदायिन्

श्री केतु देव मम देहि करावलम्बम् ॥ ९॥

 

मार्तंड चन्द्र कुज सौम्य बृहस्पतीनाम्

शुक्रस्य भास्कर सुतस्य च राहु मूर्तेः ।

केतोश्च यः पठति भूरि करावलम्ब

स्तोत्रम् स यातु सकलांश्च मनोरथारान् ॥ १०॥

 

     ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

            ॥ ॐ तत् सत् ॥

 

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